कुंदन की कुदृष्टि तो
सलवार के भीतर सुराख़ में है
आँखें सेंक रहा उरोज से
कहाँ नजर पोशाक में है
कैसे भी कुछ जतन करके
वहां पहुंचने की फ़िराक में है
सूखे सुराख़ से सुख लेकर
गीला करने के ताक में है
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