सुबह करूँ शाम करूँ
दिन करूँ कि रात करूँ
चार इंच की सुराख़ पर
चार अंगुल की बात करूँ
किसी हसीन मंजर का
रोज खयालात करूँ
शब्दों में ही झलके वो
कहो तो करामात करूँ
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