निर्वस्त्र होकर देखो कभी
मैथुनमय है पूरी सृष्टि
निसर्ग सदा सहवास में है
धरा से मिलने होती वृष्टि
सारे ग्रह का आपसी संबंध
आख़िर कुछ करता है पुष्टि
निर्वसन सब पशु-पक्षी हैं
क्यों कुंठित है तेरी दृष्टि
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