कि जिस्म ही तिलिस्म है
ये रूह तो केवल राई है
चार इंच की सुराख़ की
कहानी गहरी खाई है
ये खुद ही पूरी दुनिया है
इसमें ही दुनिया समाई है
मेरी कविता भी तो तुमसे
कुछ यही तो कहने आई है
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