चारपाई का चौसर जानो
फेंकना कैसे पासा समझो
अतृप्त हैं अस्सी फीसदी
नारियों की निराशा समझो
कहतीं कोई नहीं हैं लेकिन
उनके मन की आशा समझो
ये बदमिज़ाज है बिस्तर पर कि
बदन को तुम बताशा समझो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें