यूँ तो वैसे मुंहफट हूँ
और करतूतें नापाक है
अपने मंसूबे पर कायम हूँ
मंसूबा शर्मनाक है
आदत से मजबूर हूँ
मिज़ाज भी मुश्ताक़ है
जिस्म में जो मजा है जानी
वो रूह में कहाँ खाक है
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