मन का प्रीत अनमोल मैं मानूं
कुछ तन का प्यार भी तोल प्रिये
चुंबन से बस काम चले न
नीचे का पट खोल प्रिये
खलनायक ही खड़ा हुआ तो
अब क्या बोलूं बोल प्रिये
जिस्म से जिस्म मिलने दे
रूह के राह में झोल प्रिये
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