अब तक है आँखों में मंजर
कैसे घुसा अंदर खंजर
चिर गया सब बाहर-भीतर
हरा हुआ मन धरती बंजर
हो गया सब कुछ तितर-बितर
तकिया चादर इधर-उधर
कितना आनंद इससे पूछो
साक्षी है ये गरम बिस्तर
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