शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

साक्षी है ये गरम बिस्तर

 


अब तक है आँखों में मंजर 

कैसे घुसा अंदर खंजर 


चिर गया सब बाहर-भीतर

हरा हुआ मन धरती बंजर 


हो गया सब कुछ तितर-बितर 

तकिया चादर इधर-उधर


कितना आनंद इससे पूछो  

साक्षी है ये गरम बिस्तर 

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