सेक्स शीतल छांव है तो
तेज तप्त कभी धूप बना
प्यार के ही सारे स्वरूप
सुंदर कभी कुरूप बना
पहले भी थे नगरवधु
अब कोठे का रूप बना
धीरे-धीरे समाज का
एक जटिल प्रारूप बना
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