जब ढंकोगी नहीं मिठाइयां
भिनभिनाएंगी ही मक्खियाँ
दोष देती हो मेरी नजरों को
कहती हो- गंदी तेरी अँखियाँ
सुधार दोतरफा होना चाहिए
क्या केवल मुझमें है कमियां
स्वीकार करें हम दोनों कुछ
या खुला करें सब पाबंदियां
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