यौन दमन जारी है कब से मगर
भयंकर दबाव में भी दबता नहीं
कोशिश झुकाने की लाखों मगर
अंधड़-तूफान में भी झुकता नहीं
काम ऊर्जा है नियति की नेमत
कभी हारकर घुटने टेकता नहीं
कंगूरे पे चाहो तो पहरा बिठा दो
सेक्स की नींव है कि हिलता नहीं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें