रविवार, 3 नवंबर 2024

ऐसे चलती हो कि स्तन हिलता है

 


कहाँ से सीखी हो चलने का हुनर 

ऐसे चलती हो कि स्तन हिलता है 


हँसने-मुस्कुराने का अंदाज भी ऐसा 

जैसे किसी बाग में फूल खिलता है 


मैं उत्तेजित हो उठता हूँ सोचकर ही 

पता नहीं उत्तेजना से क्या मिलता है 


मैं धीरे-धीरे और कुरेदता हूँ यादों को 

जैसे कि कारपेंटर लकड़ी छिलता है

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