कहाँ से सीखी हो चलने का हुनर
ऐसे चलती हो कि स्तन हिलता है
हँसने-मुस्कुराने का अंदाज भी ऐसा
जैसे किसी बाग में फूल खिलता है
मैं उत्तेजित हो उठता हूँ सोचकर ही
पता नहीं उत्तेजना से क्या मिलता है
मैं धीरे-धीरे और कुरेदता हूँ यादों को
जैसे कि कारपेंटर लकड़ी छिलता है
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