जाम जैसा छलकता यौवन है
कसा हुआ सुडौल बदन है
उस पर क़यामत और कि
नशीली आँखें कामुक स्तन है
कैसे रखूं नियंत्रण में अब
विचलित हुआ मेरा मन है
विचलित मन को साधने ही तो
भग भजन, काम कीर्तन है
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