मथ रहा मन मंजर वो
स्मृति में चल रहा है रील
निर्वस्त्र आ खड़ी होती है
बरतता हूँ जब कोई ढील
सैकड़ों मील से सुख लेता हूँ
फिर भी उतना वैसा फील
वो भी है बड़ी दरियादिल
मेरा दिल भी जिंदादिल
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