मैंने काटा था तेरी नाभि को
नशा आज तक उतरा नहीं
नाभि के भँवर में डूबते ही
गहराई से बाहर उबरा नहीं
मैंने यादें ऐसा सहेज लिया
कि इंचमात्र भी बिखरा नहीं
वो मंजर गुजरने के बाद भी
ठहरा हुआ है गुजरा नहीं
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