कभी आलू कभी अंडा खाते
ये है नहीं कोई रोग
कभी मुर्गा-मछली का मन
कभी बकरे का भोग
कुछ खाने-पीने जैसा ही
यथार्थ है संभोग
कभी लिटाके कभी बिठाके
करें सेक्स प्रयोग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें