मंगलवार, 25 सितंबर 2018

लोगों को कडुवा सच भाता ही नहीं


मुझे मीठा झूठ बोलना आता ही नहीं
लोगों को कडुवा सच भाता ही नहीं
जब मैंने ख़ामोशी की लिबास ओढ़ ली
अब चाहने पर भी कुछ बोल पाता ही नहीं

- कंचन ज्वाला कुंदन 

अब गिरते समय गहराई क्या देखूं...

मैंने चढ़ते समय ऊंचाई नहीं देखा
अब गिरते समय गहराई क्या देखूं
देख लिया जितना देखना था तेरा हुस्न
बेवफाई के बाद अब तेरी परछाई क्या देखूं

- कंचन ज्वाला कुंदन

चाहूँ तो दिवाली में पटाखे भी जला लूँ, चाहूँ तो ईद में गले भी लगा लूँ...

हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं
न किसी मजहब का मुझे लेबल चाहिए
न छुपने के लिए कोई टेबल चाहिए
जहाँ किसी जाति का कोई परकोटा न हो
जहाँ कोई बड़ा कोई छोटा न हो
मैं चाहता हूँ उस रास्ते निकल जाऊं
हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं
चाहूँ तो दिवाली में पटाखे भी जला लूँ
चाहूँ तो ईद में गले भी लगा लूँ
चाहूं तो मंदिर में घंटी भी बजा लूँ
चाहूं तो मजार में चादर भी चढ़ा लूँ
जहाँ आडंबर में औंधे मुंह गिरुं
मैं चाहता हूँ वहां संभल जाऊं
हर पल कोशिश रहती है मेरी
अपने आपको कुछ बदल पाऊं
मगर ये हरगिज़ मुझे मंजूर नहीं
किसी सांचे में ढल जाऊं

- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 23 सितंबर 2018

मुक्तक...

मुक्तक - 01
पुरानी मोहब्बत का कसक सीने में उठेगा
उसकी याद का अंकुर जब दिल में फूटेगा
हकीकत ख़तम अब सिर्फ एक एहसास है बाकी
ये मालूम होगा तुझको जब तेरा ये नींद टूटेगा

मुक्तक - 02
जिसकी तारीफ करता था हुआ क्या उस कहानी का
लगता है जिस्म ही निकली एहसास रूहानी का
आंसू बहा चुपके से करले याद भी मंजूर
मगर चर्चा नहीं करना कभी किस्सा पुरानी का

मुक्तक - 03
ये चाहता हूँ मैं चला जाऊं कहीं वन को
फिर क्यों ठिठक जाता हूँ रोककर मन को
हासिल नहीं होना यहाँ कुछ भी आखिर तो
मैं कर रहा बर्बाद क्यों अपने जीवन को

- कंचन ज्वाला कुंदन

अंधे हो जाओ फिर दिखाई दो

मैं तो इतना ही चाहता हूँ
अपनी असफलता का
मत कभी सफाई दो
अंधे हो जाओ फिर दिखाई दो
बहरे हो जाओ फिर सुनाई दो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

हम तो 'झंडुबाम'

अप्रैल फूल की शुभकामनाएं

हम रोज मूर्ख बन जाते हैं
या रोज मूर्ख बनाते हैं
पूरे-पूरे साल भर
हम अप्रैल फूल मनाते हैं

आज सब्जी वाले ने तौला सौ ग्राम कम
हमें रत्ती भर भी नहीं इस बात का गम

कल पुलिस वाले ने कहा-
आपके माथे पर C लिखा है क्या
हमने कहा-लिखा होगा साहब!
आज देखे नहीं थे आईना
हमसे हो गई भूल

परसों अखबार के विज्ञापन ने
बनाया था अप्रैल फूल
तब भी हमने खुद को कहा-
डोंट माइंड....बेटा! कूल

टीवी में नेताजी का हम भाषण सुन रहे थे
वो भी झोंक रहे थे सबके आँखों में धूल

तभी दन्न से साला बिजली हो गया गूल
उसने भी कह दिया हैप्पी अप्रैल फूल

चुनावी सीजन में हमने
कई पार्टी से लिया था नोट
और नोटा दबाके आ गए
किसी को नहीं दिया वोट
तेरे मन में खोट तो मेरे मन में खोट
तुमने पहुँचाया चोट तो हमने भी दिया चोट

सौ आने सच है, नहीं जरा भी झूठ
शिक्षा तंत्र में पालकों से रोज-रोज की लूट

खाली हो गया जेब, पूरा नहीं हुआ इलाज
मेरी बूढ़ी माँ का डॉक्टर ने, डिस्चार्च कर दिया आज

चोरी का रिपोर्ट भी अब तो
नहीं लिखता थानेदार
हम भी अप्रैल फूल
और अप्रैल फूल सरकार

रोज लगाकर सोते हैं
हम तो 'झंडुबाम'
लोकतंत्र के डकैत से
साला जीना हो गया हराम

-कंचन ज्वाला 'कुंदन'
  97525-97297

हम सब मूर्खों को एक दूसरे की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं।।।हम ऐसे ही दिन दूनी, रात चौगुनी फलें- 'फूलें' और आगे बढ़ें।।।

कुंदन के कांटे : अंजुली भर समय...

कुंदन के कांटे
अनावश्यक Facebook और WhatsApp की दुनिया में घुसे पड़े लोग जो बाहर निकलना चाहते हैं वे नीचे लिखी मेरी कविता और लेख जरूर पढ़ लें...हालांकि यह मेरा भ्रम है, इससे बाहर न आप निकल सकते हैं और न मैं... हम दोनों की कुछ दिक्कतें हैं, कुछ मजबूरियां हैं, और कुछ अपनी-अपनी वजह भी.. Facebook और Whatsapp जैसी डिजिटल प्लेटफॉर्म आने के बाद बेरोजगारी पूरी तरह से मिट चुकी है। हम सबको काम मिल चुका है। हर हाथ को काम मिल चुका है। लगे रहो इंडिया Facebook और WhatsApp पर...तो मन लगाकर मेरी लेख और कविता भी पढ़ लीजिए...


मन में उधेड़बुन चल रहा है आज। कुछ कहना चाहता हूं किसी से। मगर किससे कहूं अपनी बात। अपनी धर्म पत्नी से। क्या वह मेरा उधेड़बुन सुलझा देगी। धर्म पत्नियां पतियों की बात सुलझाने वाली होतीं तो यह दुनिया इतना उलझा हुआ नहीं होता। कुछ उधेड़बुन के बीच मन को हल्का करने जेब से मोबाइल निकाला और Facebook खोल लिया। कुछ विद्वानों ने कहा है कि किताब सबसे अच्छा मित्र होता है। आजकल लोगों के लिए Facebook से अच्छा किताब कुछ हो भी नहीं सकता है। लोग 8-8 ,10-10 घंटे Facebook में बिताते हैं। Facebook किसी मर्डर मिस्ट्री उपन्यास की तरह लत देने वाली किताब से कम नहीं है।

Facebook खोला ही था कि मेरी उधेड़बुन ही छूमंतर हो गई
। देखा कि आज एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन अनजान महिला मित्रों का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया है। मैं Facebook खोला बेमन से था। चाहता था 2 मिनट बाद बंद कर दूंगा। मगर अब डूबने लगा था। डुबकियां भी मारने लगा था। मैं आपको बता दूं कि घंटे 2 घंटे में Facebook और WhatsApp खोल कर देख लिया करता हूं। इसका क्या कारण हो सकता है यह अभी तक फिलहाल मुझे मालूम नहीं हो सका है। मालूम हो जाए तो जरुर बताऊंगा। आपको पहले मालूम चले तो आप मुझे Facebook पर पहले बताइएगा। एक मां अपने बच्चों की डाइपर चेक करती है बीच बीच में कहीं बच्चा पेशाब तो नहीं किया। कोई मां हगिस चेक करती है कहीं बच्चे ने पोट्टी तो नहीं कर दी। शायद कुछ ऐसा ही मैं भी बीच-बीच में अपना हगिस जैसा WhatsApp और डाइपर जैसा Facebook को चेक करते रहता हूं बिल्कुल किसी मां- बाप की तरह। मेरे दो अनमोल रतन Facebook और WhatsApp ही तो हैं।

रिक्वेस्ट आए महिला मित्रों को तुरंत कंफर्म किया। मित्र बनाया। इन्हें मित्र बनाने के 2 वजह थे। पहला वजह सनी लियोनी मेरा बेस्ट एक्ट्रेस है। दूसरी वजह अपने Facebook अकाउंट पर मित्रों की सूची को 5000 तक जल्दी-जल्दी पहुंचाना चाहता हूं। हालांकि मेरा पहला वजह बहुत बेतुका लग सकता है। मगर इसके पीछे भी कई कहानी है। जिसे और कभी शेयर करूंगा। मैंने महिला मित्रों का प्रोफाइल चेक किया। उनकी अच्छी-अच्छी तस्वीरों से खूब आंख सेंका। आंखों में चमक आ गई। कुछ लोगों का तो इस Facebook में आंख सेंकने की वजह से ही आंखों की रौशनी बढ़ चुकी है।चश्मा का नंबर भी उतर चुका है कुछ लोगों का। हालांकि बहुतों का इस Facebook की वजह से ही लगातार चश्मा का नंबर भी बढ़ रहा है। मेरी आँखों का नंबर घट रहा है या बढ़ रहा है। यह मैं ठीक से नहीं बता पाऊंगा। यह तो डॉक्टर ही ज्यादा बेहतर बता पाएंगे। हां आप भी अपना आंख चेक जरुर करवा लेना कभी जब इस Facebook से थोड़ी फुर्सत मिल जाए तो...

मैंने आज मेरी छुट्टी Facebook और WhatsApp के साथ बिता दी। कई दोस्तों से ऑनलाइन चैट कर लिया। एक और बात बता दूं सैकड़ों दोस्त मेरे टच मोबाइल के टच में है पर मेरे टच में एक भी दोस्त नहीं है। मेरे पड़ोस में मेरा एक दोस्त है जिसके साथ आज छुट्टी के दिन घूमने जाना चाहता था। मगर अफसोस इस Facebook में ही उसके पोस्ट पर मजाक से मजाकिया कमेंट कर दिया तो वह भी पिछले हफ्ते से नाराज चल रहा है।

Facebook पर डूबा ही था कि एक लिंक दिखा जिसमें लिखा था इतिहास में आपका जुड़वां कौन है। मैंने क्लिक किया तो पता चला कि इतिहास में मेरा जुड़वा नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं। Facebook ने बताया कि बोस जी से मेरा शक्ल मिलता-जुलता है। खुशफहमी के लिए यह बात जरा अच्छा लगा। एक और लिंक नजर आया जो कह रहा था कि मुझे क्लिक करो तुम्हारा कुछ मिनट और बर्बाद करो। मैं तुम्हें बताऊंगा कि तुम्हारा चेहरा रामायण के किस पात्र के जैसा है। क्लिक करने पर उसने बताया कि मैं साक्षात राम जैसा दिखता हूं । हमारे सभी अपने और अपनेपन डिजिटल हो चुके हैं। किसी के पास किसी की प्रशंसा करने वक्त नहीं है। इसकी प्रतिपूर्ति के लिए यह सब लिंक हमारी चाटुकारिता करता है। चाटुकारिता से याद आया मैं पत्रकार भी हूँ। वैसे चाटुकारिता शब्द से पत्रकारिता की दुनिया मुझे क्यों याद आया यह कह पाना कठिन है। कहीं अब दोनों शब्द पर्यायवाची तो नहीं हो गए हैं??? यह सवाल अमिताभ बच्चन के कौन बनेगा करोड़पति में पूछे जाने लायक अब हो चुका है। अब फेसबुक से बोर होकर व्हाट्सएप्प खोल चुका था। इसमें भी भारी ज्ञान बरसने लगा था। मैं सब ज्ञान को समेट भी नहीं पा रहा था। और इस तरह अधकचरे कूड़े ज्ञान के बीच पुनः 2 घंटे का सार्थक सदुपयोग कर लिया। बस मित्रों आज इतना ही...लगे रहो इंडिया Facebook पर, WhatsApp पर....

Facebook और WhatsApp के ज्ञानबाजी से जरा बोर हो गया था इसलिए इसके खिलाफ में कुछ लिख दिया। इस घटिया आदमी के आनन-फानन में लिखी घटिया लेख के लिए कमेंट पर दो चार सभ्य गाली जरुर दे देना। वक्त बर्बाद करने के लिए यदि 1 मिनट और बचा हो तो मेरी यह कविता जरुर पढ़ लेना...

अंजुली भर समय...

बारिश की बूंदों को
अंजुली में सहेज कर
पी सकते हैं
मगर नाली में गिरे पानी से
नहीं धो सकते पैर भी
बारिश की बूंदों की तरह
समय बरस रहा है 24 घंटे हम पर
मगर बर्बाद हो रहा है नाली में बहकर
Facebook में फिसलकर
WhatsApp में पिघलकर
जाने कहां-कहां बिखरकर
अंजुली भर तो...
सहेज लो समय साथियों
अंजुली भर समय...
आपका जीवन बदल सकता है
अंजुली भर समय...
आपका जीवन बदल सकता है       

-कंचन ज्वाला कुंदन

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

सारा सिस्टम लूल है, यही तो ट्रैफिक रूल है...

सारा सिस्टम लूल है, यही तो ट्रैफिक रूल है

मेरे घर से निकलते ही
दस कदम दूरी पर
रिंग रोड में
एक चौराहा पड़ता है
वहां अक्सर ड्यूटी बजाने वाले
किसी ट्रैफिक पुलिस से
मेरी जान पहचान है
वह निहायत ईमानदार है
और बहुत पढ़ा-लिखा भी
आप बिना हेलमेट के
गंवईहिया हुलिया में
कभी मेरे चौराहे से गुजरिए
आपको वह मात्र सौ रुपए लेकर
अपनी ईमानदारी का सबूत देगा
और उनके बातचीत करने के
शऊर से वह, कसम से
पीएचडी धारी लगता है
वह कितना प्यार से समझाता है
हेलमेट का गुण गिनाता है
हाँ, ये बात अलग है
वह खुद हेलमेट नहीं लगाता है
और वहां का ट्रैफिक साइन
जैसे पीकर सरकारी वाइन
अक्सर मदमस्त जलता है
साला, अपने हिसाब से चलता है
कुल मिलाकर........
सारा सिस्टम लूल है
यही तो ट्रैफिक रूल है
ट्रैफिक में.....
कभी पुलिस गलत
कभी चालान फर्जी
ट्रैफिक में......
कभी मेरी मनमानी
कभी उसकी मर्जी
ट्रैफिक में.....
आप सारा कागजात लेकर निकले हैं
ये आपकी भूल है
ट्रैफिक में.......
जुर्माना वसूली एक कानून है
अपना एक वसूल है
भले ही सारा सिस्टम लूल है
पर यही तो ट्रैफिक रूल है

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

डॉक्टर ने कर दिया अधूरा ही डिस्चार्ज...

सवा आने सच है नहीं जरा भी झूठ
शिक्षा जगत में पालकों से रोज-रोज की लूट
मेरी बूढ़ी मां का पूरा हुआ नहीं इलाज
डॉक्टर ने कर दिया अधूरा ही डिस्चार्ज
रिपोर्ट भी लिखते नहीं अब तो थानेदार
हम भी अप्रैल फूल और अप्रैल फूल सरकार
सोते हैं हम तो अब लगाकर झंडू बाम
लोकतंत्र के डकैत से साला जीना हो गया हराम
- कंचन ज्वाला कुंदन 

बुधवार, 19 सितंबर 2018

क्यों मेरा मंदिर है, क्यों तेरा मस्जिद है...

अलग क्यों दिवाली है, अलग क्यों ईद है
क्यों मेरा मंदिर है, क्यों तेरा मस्जिद है
गीता-कुरान की लड़ाई का
कई खंडहर चश्मदीद है
कुल मिलाकर देखो तो इंसान ही मर रहे
लड़ने की जिद छोडो तो शांति की उम्मीद है
कोई तो लगा है हमें उकसाने में, फंसाने में
मेरा खून लाल तुम्हारा खून हरा बताने में
इंसानियत से नाता जोड़ो
अंधे धरम का कुचक्र तोड़ो
अगर तुम्हारे अंदर यह हौसला है
कुछ नहीं सब चोचला है
धरम का धंधा तो सबसे बड़ा ढकोसला है
दर लगा है कहीं दरबार लगा है
इसे बढ़ाने में पूरा सरकार लगा है
मजहबी मामले को तूल देने में
लगातार टीवी-अखबार लगा है
लोग कह रहे हैं देश बदल रहा है
मजहबी द्वेष धूं-धूं जल रहा है
हमें धर्म की पट्टी कौन पढ़ाता है
दो दिलों में दूरियां कौन बढ़ाता है
पूरा का पूरा सिस्टम ही खोखला है
कुछ नहीं सब चोचला है
धरम का धंधा सबसे बड़ा ढकोसला है
लोगों के मन में डर बिठाकर
चला रहे कारखाना
इसके ही वजह से मिल गया है
लोगों को बांटने का बहाना
हिंदू का मुर्दे को जलाना
मुस्लिम का मुर्दे को दफनाना
अलग-अलग रहने का
क्या गजब बहाना
बस इतनी-सी बात है
घोंसला है तो चिड़िया है
चिड़िया है तो घोंसला है
कुछ नहीं सब चोचला है
धरम का धंधा तो सबसे बड़ा ढकोसला है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

तुझे जिंदगी बसाने का शौक है शहर में...

तुझे जिंदगी बसाने का शौक है शहर में
तो जीने से पहले ही मर ले
कल की नींद के लिए आज
समझौता करना पड़े तो कर ले
भागना बुरा नहीं है
इस भागम भाग शहर में
तू भी तेज भागने का
जतन कोई कर ले
मगर कब तक भागेगा भाई...!
सुकून से कहीं, कभी तो ठहर ले
किराए में रहना बंद कर मेरे दोस्त
जा पहले अपना एक घर ले

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

जीवन-चक्र और लोक-तंत्र...शून्य बटे सन्नाटा, अंडा बटे पराठा...

पैदा होने के बाद
पंद्रह किलो होते ही
स्कूल जाओ
सरकारी स्कूल में
नाम लिखाओ
पढ़ाई कम टीचर की डांट ज्यादा खाओ
गधे टीचर की वजह से
आप भी खच्चर बन जाओ
परीक्षा में पास होने
मंदिर जाओ, घंटा बजाओ
आरती करो, भोग चढ़ाओ
बोर्ड एक्जाम में में फेल हो गए तो
फांसी लगाओ
फंदे से बचकर बड़े हो गए तो
लड़की पटाओ
गलियों में चक्कर लगाओ
देश के दामाद बाबू
अंबानी का जियो फोन ले आओ
फ़ोकट में दिन-रात बतियाओ
कॉलेज की डिग्री लेकर
रोजगार कार्यालय में पंजीयन कराओ
जगह-जगह चप्पल घिसने के बाद भी
जब कोई जॉब न लगे
तो खडूस बाप कहेगा- इस नालायक की शादी कराओ
शादी होने पर पंजीयन
बच्चे होने पर पंजीयन
गाड़ी खरीदने पर पंजीयन
रोजगारी का पंजीयन
बेरोजगारी का पंजीयन
एक-एक पंजीयन के लिए
पांच-पांच दिन का चक्कर लगाओ
कभी इस दफ्तर जाओ
कभी उस दफ्तर जाओ
आधार कार्ड बनाओ
पैन कार्ड बनाओ
राशन कार्ड बनाओ
वोटर लिस्ट में नाम लिखाओ
पासपोर्ट बनाओ
चालान कट जाएगा
जल्दी से गाड़ी का लाइसेंस दिखाओ
मार्कशीट में माँ का नाम गलत है
इसे जल्दी सुधरवाओ
यहाँ आओ, वहां जाओ
बच्चे को बुखार है
झोलाछाप डॉक्टर के पास ले जाओ
झोलाछाप डॉक्टर के गलती के कारण
बच्चे को बड़े डॉक्टर के पास ले जाओ
महंगे इलाज कराओ
मोटी फ़ीस चुकाओ
बाद में पता चला
इलाज के दौरान बच्चे की मौत
बिल भरो, डेड बॉडी ले जाओ
अब नहीं मिल रहा है मुक्तांजलि वाहन तो
पत्रकार को फोन लगाओ
डॉक्टर पर आरोप लगाओ
पत्रकार के मदद का भी
छोटा-मोटा कीमत चुकाओ
वैज्ञानिक बनते जा रहे पत्रकार बताएगा-
बच्चे की मौत दवाई के ओवरडोज से हुई है
जाओ तत्काल थाने में रिपोर्ट लिखाओ
थाने में बड़े तोंद के कांस्टेबल कहेगा
आज थानेदार साहब नहीं हैं
कल आओ
कल गए तो परसों आओ
परसों गए तो नरसों आओ
रिपोर्टर भैया को फिर फोन लगाओ
उसके आने पर उसकी गाड़ी में पेट्रोल भरवाओ
लंच टाइप का नाश्ता कराओ
सदियों से भूखे उस पत्रकार को खाना खिलाओ
मुर्गा बनाओ, दारू पिलाओ
मैंने कहा- भैया यही तो जीवन है
जीवन में ये सब करना ही पड़ता है
उसने गरियाते हुए कहा-
ज्ञान मत झाड़ो, अपना काम करो
मुझे कल फिर यहाँ आना है
परसों वहाँ जाना है
अभी ना जाने क्या-क्या बनवाना है
ये बनाओ-वो बनाओ
ये दिखाओ-वो दिखाओ
हर अधिकारियों की डांट सुनो
यहाँ-वहाँ धक्के खाओ
दुनियाभर के कार्डों की गलतियां सुधरवाने
कई-कई दिनों तक चक्कर लगाओ
हर कार्ड में एक न एक गलती करना
भारतीय ऑपरेटर का जन्म सिद्ध अधिकार है
भारत में ऐसा कोई एक भी काम नहीं
जिसका एक बार में ही नैया पार है
ढूंढने पर भी ऐसा कोई काम नहीं है
जो एक बार में ही आर-पार है
हर काम में पैसों का पेंच है
हर काम में रुपयों की दरकार है
दुनिया में सबसे बढ़िया मेरा लोकतंत्र है
और सबसे अच्छा भारत सरकार है
मित्रों...! सबसे अच्छा मोदी सरकार है
जीवन-चक्र ऐसे ही चलता रहेगा
गरीब के दिन दुर्दिन है
जीवन बहुत कठिन है
कुल मिलाकर बात कहूं तो
यही अच्छे दिन है
वोट देते समय लगा
कि RSS का मोदी है
अब जाकर पता चला
ये केवल चश्मुद्दीन है 
टीवी में मोदी के चेहरे और चश्मे को देखता हूँ
तो मुझे पूरी तरह फेल हो चुके
नोटबंदी की याद आती है
नोटों का केवल रंग बदलने
नोटों का केवल आकार बदलने
नोटबंदी में लाइन लगाओ
पैसे नहीं है तो भूखे मर जाओ
गुल्लक तोड़कर बिटिया की शादी कराओ
बिना कोई उपहार दिए विदा कराओ
नहीं चल रहा छोटा दुकान तो बंद करो
निठल्ले बैठे बैंक वालों को जाकर तंग करो
देश के लिए नोटबंदी है मित्रों...!
आओ मिलकर जंग करो
अंत में नोटबंदी की सफलता क्या...?
शून्य बटे सन्नाटा...
अंडा बटे पराठा...

-कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 16 सितंबर 2018

पहले सफाया उस सत्ता का जो इसका जिम्मेदार भी है ...

ठीक है मान लिया हर नक्सली गद्दार भी है
दिमाग से पंगु मानसिक बीमार भी है

कैसे जुटाते हैं कहां से आते हैं इतनी मोटी रकम
सुना है उनके पास बड़े-बड़े हथियार भी है

हमारे शहर की हलचल कैसे पहुंचती है उन तक
जंगल से जुड़ा इस शहर में कोई तार भी है

ठीक है आप पूरी तरह उन्हें खोखले साबित कर लो
मगर नेटवर्क से लगता है इनका ठोस विचार भी है

पढ़े-लिखे लोग जुड़े हैं किसी मुहिम की तरह
मुमकिन है इसके पीछे कोई सरकार भी है

बेवजह नहीं भड़की होंगी घातक ये चिंगारियां
पहले सफाया उस सत्ता का जो इसका जिम्मेदार भी है

- कंचन ज्वाला कुंदन

अहंकार के उस घड़े को फोड़ दिया है मैंने ...

जीवन का एक नया तराना छेड़ दिया है मैंने
जीवन का बेसुरा गाना छोड़ दिया है मैंने

भटकाव के सौरास्तों से एक रास्ता चुना मैंने
सफर सुहाना की तरफ रुख मोड़ दिया है मैंने

फंसा हुआ था अलग-अलग सौ कामों के बीच में
जीवन के अब सारे उलझन तोड़ दिया है मैंने

जीवन के इस रास्ते पर रोड़ा था वह बहुत बड़ा
अहंकार के उस घड़े को फोड़ दिया है मैंने

अपने ही बेसुरेपन से नीरस पड़ा था जीवन-वीणा
मधुर वीणा के टूटे तार को अब जोड़ दिया है मैंने

- कंचन ज्वाला कुंदन

दशरथ मांझी जैसा आओ पर्वत पर आघात करें...

आज करूंगा कल करूंगा यह ना केवल बात करें
करने के लिए बस इतना ही एक छोटी शुरुआत करें

बड़े इरादे लेकर साथियों फौलादी चट्टानें तोड़ें
दशरथ मांझी जैसा आओ पर्वत पर आघात करें

- कंचन ज्वाला कुंदन

जब घुटन के भीतर कोई सपना पलेगा...

आपके पूंछ में आग नहीं लगी तो लंका कैसे जलेगा
केवल उछल-कूद से बिल्कुल काम नहीं चलेगा

जागना है तो जागो अभी सूर्योदय है
जागने का क्या मतलब जब सूरज ढलेगा

हस्र यही होगा वह मर जाएगा अंदर ही
जब घुटन के भीतर कोई सपना पलेगा

मूंद लोगे आंखें तो बड़ा होता जाएगा
सामना करने से ही मुसीबत टलेगा

पत्ते-पत्ते सिंचोगे तो पौधे मर जाएगा
जड़ को दो खाद-पानी वह खूब फलेगा

- कंचन ज्वाला कुंदन

वह मिलेगा तभी जब पागल हो जाओगे...

अभी कहां हो, जाना कहां है, कैसे जाओगे
बस इसी पर फोकस करो सफल हो जाओगे

पास क्या है, पाना क्या है, कैसे पाओगे
यह तुम्हें उकसाएगा अगर कहीं रुक जाओगे

देख लिए सपने, मगर मुझे यह बताओ
सपने को सच आखिर कैसे कर पाओगे

कोसे के कीड़े का कंफर्ट जोन तोड़ो
अरे बंद दड़बे से बाहर कब आओगे

लक्ष्य नहीं मिलेगा बुद्धिमानी से तय है
वह मिलेगा तभी जब पागल हो जाओगे

शनिवार, 15 सितंबर 2018

ओ छोटू कहाँ है तू...

ओ छोटू कहाँ है तू...
सिर्फ एक शब्द नहीं पूरी किताब है छोटू
बीते हुए सुनहरे लम्हों का पूरा हिसाब है छोटू
छोटू मेरा दोस्त है जिगरी यार है छोटू
मेरे दिल का टुकड़ा छोटा संसार है छोटू
छोटू और मेरे बीच एक लंबी कहानी है
हमारी दोस्ती की फ़लसफ़ा बहुत पुरानी है
दोनों के दिलों में आज भी जिंदा है प्यार
दूरियों और दरारों के बावजूद दोस्ती है बरकरार
- कंचन ज्वाला कुंदन

आज के जो युवा...

आज के जो युवा
देश बदलना चाहते हैं
समाज बदलना चाहते हैं
Facebook में
WhatsApp में
उनसे गुजारिश है मेरी
पहले वे अपना
मोबाइल से उखड़ रहे
कीपैड को बदल लें
खराब हो चुके
बैटरी को बदल लें
पुराने हो चुके
जूते को बदल लें
टूट रहे
बेल्ट को बदल लें
कलाई में बंद पड़ी
घड़ी को बदल लें
पूरे 75 रुपए वाली
चश्मे को बदल लें
संडे मार्केट से खरीदा हुआ
टोपी को बदल लें
साथियों...
केवल सोशल मीडिया में
देश और समाज बदलने से पहले
आप अपनी गधे जैसी जिंदगी को बदल लें
मेरे ख्याल से
यही अच्छा होगा...
यही बेहतर होगा...
-कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 2 सितंबर 2018

ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है... मुझे मरके भी जिंदा रहना है...

कुछ शख्सियतों की चर्चा में
अपनी भी कुछ बात चले
मेरी जरूरत उन्हें महसूस हो
कुछ ऐसा उनका साँस चले
सांसें अंतिम तक मेरा यही कहना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है
ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है

लोगों के दिलों में छाप रहे
पक्का रहे अपने आप रहे
करना सच है ये ख्वाब कुंदन
भूलना नहीं यह याद रहे
यादें लेकर कुछ यादों संग बहना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है
ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है

चाहता हूं कोई याद कर ले
भींच मुट्ठी याद भरले
अमीरी न सही टूटा खाट सही
मेरी याद मगर ठाट-बाट कर ले
मेरे लिए सबसे बड़ी यही गहना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है
ख्वाहिश एक ही यही तमन्ना है
मुझे मरके भी जिंदा रहना है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

शोषण-कुपोषण मेरे जीवन की कुंदन...

यह न कहना कि बेकार है
मेरी जिंदगी की यही सार है

तंगहाली-बदहाली, गरीबी-कंगाली
मेरा सच्चा यार है प्यार है

ऊपर खामोशी का लिबास है मेरे
अंदर आंसू की लहर है धार है

हंसने का हुनर ये श्वांग भी है जान लो
अंदर गम का गुबार है अंबार है

शोषण-कुपोषण मेरे जीवन की कुंदन
बारहमासी साथी सदाबहार है

- कंचन ज्वाला कुंदन 

बस कर लिया इतना कभी तू मर नहीं सकता...

अगर तू खुद ना चाहे तो खुदा कुछ कर नहीं सकता
          तेरी बदरंग जीवन में नया रंग भर नहीं सकता


अगर तू ही न चाहे तो कोई कुदरत भी तुझ पर
कोशिश लाख करे लेकिन करिश्मा कर नहीं सकता

संघर्ष करने का हुनर तू सीख ले प्यारे
डरावनी राहों में भी तब तू डर नहीं सकता

रौशन नाम करने का जुनूं एक पाल भी कुंदन
बस कर लिया इतना कभी तू मर नहीं सकता
- कंचन ज्वाला कुंदन 

पहले चंडी थी आज रंडी है पहचानता हूं मैं...

अखबार को बेआबरू औरत मानता हूं मैं
हां यह दो रुपए में बिकता है जानता हूं मैं

मेरे शहर की हर घटना की नुमाइश करती है ये
मगर अधनंगी औरत है इसे पहचानता हूं मैं

लोगों को शौक है इसके बदन को खुली देखने का
पर ये कभी पूरी बदन नहीं खोलेगी मानता हूं मैं

कभी 'इसके' हाथों कभी 'उसके' हाथों बिकती रहेगी
अरे ये चीज ही बिकाऊ है जानता हूं मैं

हां ये कभी आजादी के लिए कूद पड़ी थी मेरे साथ
पहले चंडी थी आज रंडी है पहचानता हूं मैं

- कंचन ज्वाला कुंदन

मौत के मुहाने पर हूं आपसे क्या छुपाऊं...

दर्द कितना है क्या बताऊं
अंदर के खालीपन को क्या दिखाऊं

दर्द से पशोपेश में हूं इतना कि
दर्द कभी याद रहे कभी भूल जाऊं

सोचता हूं कहीं जाहिर कर दूं ये दर्द
मगर ये दर्द नहीं गर्द है क्या बताऊं

ये मेरी खामोशी है या घुटन नहीं जानता
मैं ही नहीं जानता आपसे क्या जताऊं

जमा हो रहा है मेरे अंदर ये बारूद की तरह
मौत के मुहाने पर हूं आपसे क्या छुपाऊं

- कंचन ज्वाला कुंदन 

परेम के पचरा म झन परबे ग...

परेम के पचरा म झन परबे ग...
दू डोंगा के सवारी के भइया झन करबे ग...

कर डारे बिहा त खुस र सुवारी संग
अपन बारी-बिरता अपन दुवारी संग
लकरी कस कट जा भले चाहे आरी संग
टुरी सुघ्घर परोसी बर झन मरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

न ऐती के होबे न ओती के होबे
मुड़ी नवाके घूंट-घूंट के रोबे
जांता म दराके जिनगी ल खोबे
जरे सीते आगी ल झन धरबे ग....। परेम के पचरा म....

तैं बड़े भइया तोरे जोहार
कहना ल मान मैं करंव गोहार
फोकटे-फोकट म मत हो खोहार
जड़कल्ला के भूर्री कस झन बरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

रोज-रोज घर म झगरा झन मताबे
दारू घलो ल हाथ झन लगाबे
इज्जत के धनिया बोके झन आबे
घोलहा नरियर कस भइया तैं झन सरबे ग.....। परेम के पचरा म...

- कंचन ज्वाला 'कुंदन'

शनिवार, 1 सितंबर 2018

कुंदन के कुंडलियाँ... कहे कुंदन कविराय...

मन ही सबका मलिन है, कहते हैं सब लोग
भोगी भरे भरपेट हैं, भोगी की बड़भोग
भोगी की बड़भोग, अपनी है रोटी दाल
क्या बताएं आज की, हाल भाई बदहाल
कहे कुंदन कविराय, डूबे है चाशनी चोर
नंगा बदन शराफत देखो, घूम रहे चारों ओर

पैसे से सब होते हैं सिद्ध सकल सब काम
दिन-रात सबहि जपैं, पैसे की ही नाम
पैसे की ही नाम, रट रहे हैं लोग
करम निखट्टू भी रटैं, चाहैं छप्पन भोग
कहे कुंदन कविराय, क्या होगा संसार का
ढोया ही नहीं जा रहा, हिस्सा अपने भार का

पैसा केवल नाम में सकल शक्ति है भारी
कलियुग पैसा प्रभु, पैसा पुरुष अवतारी
पैसा पुरुष अवतारी, आया है कलिकाल में
भक्ति में रहो लीन, भक्तों तुम हर हाल में
कहे कुंदन कविराय, भक्ति बहुत जरूरी
पैसा प्रभु रीझ जाए तो, हर कामना होगी पूरी

है यदि पैसा पास में, होती है पहचान
वरना जानते लोग भी, कहते हैं अनजान
कहते हैं अनजान, यदि पैसा नहीं है पास
पॉकेट में पैसा रहे, तो लगते हैं कुछ खास
कहे कुंदन कविराय, खासमखास ही दिखिए
पैसा पाने का हुनर, अच्छे ढंग से सीखिए

पैसे का मानव पुतला, पैसे का नाटकबाज
पैसे से दब जाते हैं, बड़े-बड़े ही राज
बड़े-बड़े ही राज, है दफन तहखाने में
हरदम रहिए चौकन्ना, कहीं भी आने-जाने में
कहे कुंदन कविराय, माल न लेकर घूमिये
दारू के नशे में धुत्त, सफर में न झूमिये

रुपया को नमस्कार है, पैसा को प्रणाम
दम सबसे दमदार है, दौलत जिसका नाम
दौलत जिसका नाम, जैसे कोई भगवान
गरीब गुरबत में रहे. धन्य हैं धनवान
कहे कुंदन कविराय, आप भी दौड़ लगाइए
जीतने की जज्बा रहे, या पीछे हट जाइए

रुपया है भाई बहन, रुपया माई-बाप
रुपया नहीं पास तो, लगती जीवन शाप
लगती जीवन शाप, कंगाली बहुत कठिन
रोकर बीतै हर रात, रो-रो कटे सब दिन
कहे कुंदन कविराय, लगाओ कोई छलांग
सोए रहोगे कब तक भला, ऐसे खाकर भांग

रुपए की रुतबा दिखे, जब टकराए जाम से
शान बढ़ी शराब की, पीते हैं एहतराम से
पीते हैं एहतराम से, चोर-उचक्के बदमाश
बैठकर पीते ठेका में, लाइसेंस सबके पास
कहे कुंदन कविराय, मदिरा महिमा महान
दारू है भगवान, और भक्ति है रसपान

पैसे की ही कारण से, मची है भागमभाग
योगी-भोगी-रागिनी, अलापैं इसकी राग
अलापैं इसकी राग, पपीहे की जस टेर 
डूबे रहैं सब ध्यान में, जस माला की फेर
कहे कुंदन कविराय, आप भी ध्यान लगाइए
धन-मन के इस ध्यान में, तन-मन से खो जाइए

रग भी अब मिल जाते हैं, पैसे की बदले जान
पैसा तुझे पहचान न पाया, पैसा तू है महान
पैसा तू है महान. श्रीहरि भगवान सा
शास्वत सत्य सूरज के, रोज दमकता शान सा
कहे कुंदन कविराय, दमड़ी दम दमदार
मनी और माल खजाना का, महिमा अपरंपार

रे रुपया बहरूपिया के, सेठ धन्ना के धन
बहरूपिया सा रूप तेरा, रहता है बन-ठन
रहता है बन-ठन, नव दूल्हा-सा रूप
नया-नया संदूक में, बैठा रहता चूप
कहे कुंदन कविराय, संदूक खरीद ले आईये
अब संदूक को भरने की, कुछ तो जुगत भिड़ाईये

पैसा पतित पावनी, पैसा सीताराम
पैसा परमेश्वर प्रभु, पैसा है घनश्याम
पैसा है घनश्याम, ईसाईयों का ईसा भी
या करम सब कुछ यही, मुल्लाओं का मूसा भी
कहे कुंदन कविराय, करम को कम ना आंकिये
दूसरे की दौलत नहीं, अपनी करनी झांकिये

पैसा पाले पातकी, अवसर ना बारंबार
जनम सफल हो जाएगा, पैसा ही बस सार
पैसा ही बस सार, संसारी का सत्य
रुपया महिमा महान की, अलेखनी अकथ्य
कहे कुंदन कविराय, पैसा का सपना पालिए
हर दम हर-हर पैसा, रटने की आदत डालिए

पैसा पय गोकुल की, क्षीर की नीर नहीं
जे पैसा पहचान लैं, जान सुजान वही
जान सुजान वही, जे पैसा को जानै
इसके गुण गूढ़ को, जे ढंग से पहचानै
कहे कुंदन कविराय, पैसे की परख जरूरी
परख पूरी की पूरी, रह जाए न आधी-अधूरी

तैं रोथस काबर रे...

सबो संगवारी मन ल मोर डहर ले जय जोहार. संगवारी हो आज में एक ठन छत्तीसगढ़ी गीत सुनाना चाहत हंव...मोर लिखे गीत, गजल, कविता कोनो भी रचना के आपमन ल कोई उपयोगिता समझ म आही त जरुर सुझाव दुहु...बिना कोई लाग-लपेट बात के अब सीधा सुनव मोर ये गीत... रचना के शीर्षक हे " तैं रोथस काबर रे..."
तैं रोथस काबर रे...
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर

पढ़-लिख के भईया, सपना सिरजाले
अपन जिनगानी ल उज्ज्वल बनाले
अजगर कस अल्लर सोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर

तैं जिनगी ल अब तक बदल नई पाय
का बात हे मोरे समझ नई आय
गदहा कस बोझा ढोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस  काबर

जांगर के भरोसा म जिनगी हे भईया
करम नई करबे त डूब जाही नईया
अइसन भी कोढ़िया होथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर

चाहबे त जिनगी फुलवारी हो जाही
नई त आंखी म चुभही भारी हो जाही
काँटा के बीजा बोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
- कंचन ज्वाला कुंदन