विस्तार का उद्घोष औरत
शंखनाद करती है औरत ही
हम तो मात्र निमित्त बनते हैं
औलाद करती है औरत ही
हम सिर्फ कमाना जानते हैं
जायदाद करती है औरत ही
सब रिश्ते-नाते समेटकर
जिंदाबाद करती है औरत ही
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