शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

परेम के पचरा म झन परबे ग... छत्तीसगढ़ी गीत

परेम के पचरा म झन परबे ग...
दू डोंगा के सवारी के भइया झन करबे ग...

कर डारे बिहा त खुस र सुवारी संग
अपन बारी-बिरता अपन दुवारी संग
लकरी कस कट जा भले चाहे आरी संग
टुरी सुघ्घर परोसी बर झन मरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

न ऐती के होबे न ओती के होबे
मुड़ी नवाके घूंट-घूंट के रोबे
जांता म दराके जिनगी ल खोबे
जरे सेती आगी ल झन धरबे ग....। परेम के पचरा म....

तैं बड़े भइया तोरे जोहार
कहना ल मान मैं करंव गोहार
फोकटे-फोकट म मत हो खोहार
जड़कल्ला के भूर्री कस झन बरबे ग....। दू डोंगा के सवारी...

रोज-रोज घर म झगरा झन मताबे
दारू घलो ल हाथ झन लगाबे
इज्जत के धनिया बोके झन आबे
घोलहा नरियर कस भइया तैं झन सरबे ग.....। परेम के पचरा म...

- कंचन ज्वाला कुंदन©®


शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

मंसूबा तो कुछ और भी ज्यादा था, मालूम नहीं उसे क्या फायदा था...

मंसूबा तो कुछ और भी ज्यादा था
मालूम नहीं उसे क्या फायदा था

मीठा जहर घोलती रही चुपके से
भले मिश्री घोलने का वायदा था

बिछड़के मिली वो सही मायने में
उल्टा ही मोहब्बत का कायदा था

- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

अरे तू भी हो गया दीवाना कुंदन, तेरा भी जीवन सत्यानाश लगता है...

बड़ा ही ताज्जुब एहसास लगता है
कभी-कभी हास-परिहास लगता है

जो पास है उससे फ़ासला बहुत है
कोई दूर रहकर भी पास लगता है

सैकड़ों मील दूरियों के बावजूद भी
उससे करीबी का आभास लगता है

मन में पाल लो मुगालता कोई भी
फिर तो बेकार भी खास लगता है

अरे तू भी हो गया दीवाना कुंदन
तेरा भी जीवन सत्यानाश लगता है

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

पहली मोहब्बत के गम को भुलाने, दूसरी मोहब्बत में भी डूबना पड़ा

मैं टूटता नहीं था मगर टूटना पड़ा
दौड़ते हुए अचानक रूकना पड़ा

रूक भी जाता तब बात अलग थी
धक्के खाकर औंधेमुंह गिरना पड़ा

कब तक गिरा रहता यूँ सड़क पर
किसी ने हाथ थामा तो उठना पड़ा

पहली मोहब्बत के गम को भुलाने
दूसरी मोहब्बत में भी डूबना पड़ा

ये दिल की मजबूरी या जिस्म की
प्यार के लिए फिर से झुकना पड़ा

- कंचन ज्वाला कुंदन


सोमवार, 24 फ़रवरी 2020

ये कहाँ सोचा था हम दोनों ने कभी, सिर्फ ख़्वाब में ही बादाम खाना होगा...

मोहब्बत की कीमत यूँ चुकाना होगा
ज्यादा खोकर जरा सा पाना होगा
जो जरा में ही जी लिया हो जीभर
वो और तो कोई नहीं दीवाना होगा
कहती थी कि बादाम बहुत महंगे हैं
किशमिश से ही काम चलाना होगा
बांहों में भरकर गालों पे किशमिश
बस इतना ही लेने तुम्हें आना होगा
तुम बादाम लेने तो कभी मत आना
केवल किशमिश लेकर जाना होगा
ये कहाँ सोचा था हम दोनों ने कभी
सिर्फ ख़्वाब में ही बादाम खाना होगा
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

कल की छोड़ो आगे की कहानी लिखो, अपने आज की शाम को सुहानी लिखो...

कल की छोड़ो आगे की कहानी लिखो
अपने आज की शाम को सुहानी लिखो
कोई साथ नहीं देगा ये लिखकर ले लो
तुम अकेले ही दरिया की रवानी लिखो
बनाओ कुछ अपना तुम ऐसा किरदार
अपने बारे में सबकी मुंह जुबानी लिखो
पत्थर पर पत्थर तो कोई भी लिख लेगा
मैं चाहता हूँ तुम पानी पर पानी लिखो
- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

रास्ता भी खुद को बनाना पड़ता है, और खुद ही चलकर जाना पड़ता है...

रास्ता भी खुद को बनाना पड़ता है
और खुद ही चलकर जाना पड़ता है

कोई बताता भी नहीं है रास्ता यहाँ
धूल-धक्के धोखा-वोखा खाना पड़ता है

यही नियम यही नियति है यहाँ का
खुद ही खुद को जलाना पड़ता है

तेज तप्त धूप में और धधकती आग में
खुद ही खुद को तपाना पड़ता है

आम तुम्हें मिलेगा या तुम्हारे बच्चों को
मगर बाग़ तो अभी से लगाना पड़ता है

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

ये बार-बार बदलाव कहीं साजिश तो नहीं, हुक़ूमत ने संविधान में इतना दोष पाया है...

तूने बेहोश कर रखा था अब होश आया है
हक़ के लिए लड़ने का अब जोश आया है

तुम हुक़ूमत पर हो तो गलत हुक़्म मत दो
हमारे हिस्से ही हर बार अफ़सोस आया है

क्या हमारे शब्दों का कोई औचित्य नहीं है
तूने अपने ही शब्दों का शब्दकोश लाया है

संशोधन पर संशोधन कर रहे हैं किसलिए
हुक्मरां के घटिया नीयत पर रोष आया है

ये बार-बार बदलाव कहीं साजिश तो नहीं
हुक़ूमत ने संविधान में इतना दोष पाया है

क्रांति करूँगा प्रतिक्रांति के लिए तैयार हूँ
उबलने लगा है ख़ून अब आक्रोश आया है

- कंचन ज्वाला कुंदन


बेकार ही दोहराते हो अनेकता में एकता है, अरे कौन कहता है ये भारत की विशेषता है...

बेकार ही दोहराते हो अनेकता में एकता है
अरे कौन कहता है ये भारत की विशेषता है
इक्कीसवीं सदी में भी जाति-धर्म की लड़ाई
कड़वा सच यही है ये भारत की कुरूपता है
यहाँ पर गाय दूध कम वोट ज्यादा देती है
बताओ ये बात तुम्हें बिल्कुल नहीं चुभता है
अमीर भारत गरीब भारत कहते हो एक है
ये दोनों अलग-अलग है ये साफ़ दिखता है
हम एक हैं तो आये दिन दंगे क्यों, पंगे क्यों
कोरा अफवाह है ये भारत की विविधता है
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

अरे छोड़ो भी कुंदन उसे जाने दो यार, किसी और को चुन ली है हमदम उसने...

गनीमत है खाई नहीं थी कसम उसने
अच्छा है वापस खींच ली कदम उसने
हाँ मैं बच गया मकड़जाल में फंसने से
मुझे छोड़कर की है मुझपे रहम उसने
उसी ने उलझाया उसके बाद आखिर में
उलझन धीरे-धीरे की है फिर कम उसने
मैं संभालकर रखूंगा, सहेजकर रखूंगा
मुझे जितना भी दी सफर में गम उसने
अरे छोड़ो भी कुंदन उसे जाने दो यार
किसी और को चुन ली है हमदम उसने
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

बरसी है आज उस बीती हसीं रात की...

बरसी है आज उस पहली मुलाकात की
बरसी है आज जलाये हुए जज्बात की
ये वार्षिक श्राद्ध की फिर आ गई तिथि
बरसी है आज उस बीती हसीं रात की
अकेले ही ढो रहा हूँ बोझ कई सालों से
ख़ुशनुमा मंज़र और गम-ए-हालात की
आज के दिन मैं रो पड़ता हूँ हर साल
पूछना मत मुझे पीड़ा है किस बात की
जिसकी बांहों में हो वही शख्स ठीक है
रंग उसी ने जमाया मंडप पे बारात की
सही फैसला था तुम्हारा मुझे छोड़ने का
मिला जो सिला मेरी घटिया औकात की
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

मैं सोचता ही गलत था कि सीधी उंगली डाला जाए, सीधी उंगली से नहीं घी टेढ़ी उंगली से निकाला जाए...

मैं सोचता ही गलत था कि सीधी उंगली डाला जाए
सीधी उंगली से नहीं घी टेढ़ी उंगली से निकाला जाए

मेरा भ्रम था कि मेहनत से कुछ मुकाम हासिल होगा
अब सोचता हूं मुगालता बिल्कुल भी नहीं पाला जाए

बहुत कर लिया बेवकूफी मैंने तब जाकर समझ आया
जरा भी संवेदना नहीं विचारों को क्रूरता में ढाला जाए

नियम तो केवल एक है और शाश्वत है हर दफ्तरों का
जो बोझिल है पहले से उस पर और बोझ डाला जाए

गोरे अंग्रेजों के अवैध संतान बन बैठे हैं मालिक जब
सोच तो वही है शोषण का कहो बात कैसे टाला जाए

- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

गहराई से सोचने पर शक गहरा होता है, शहादत में शामिल है ये गिरगिट सरकार तक...

सरहद से लेकर सीमा के पार तक
है बारूद की ढेर पे लहू की धार तक

शहादत पर शहादत की आए दिन खबरें
खून की आंसू से भीगा है अखबार तक

बताओ ये शहादत कब तक जारी रहेगा
जवानों की जीत या आतंकियों की हार तक

आखिर हमसे क्या चाहते हैं ये आतंकी
कोई क्यों नहीं पहुंचता उनके विचार तक

गहराई से सोचने पर शक गहरा होता है
शहादत में शामिल है ये गिरगिट सरकार तक

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

हफ्तेभर का प्यार और हफ्तेभर का व्यापार : तुम्हें गुलाब और गुलाबो इतना ही पसंद है तो...

ये हफ्तेभर का प्यार नहीं
ये हफ्तेभर का व्यापार है
इस हफ्तेभर में
क्या-क्या बिका
समान कितना बिका
जरा बिजनेस के गणित का भी
गुणा-भाग लगा लो
चॉकलेट और टेडी बियर
गुलाबों की बिक्री का भी
पूरा हिसाब लगा लो
मेरे बेरोजगार साथियों
तुम्हें गुलाब और गुलाबो
इतना ही पसंद है तो
इस साल गुलाब देने के बजाय
गुलाब की दुकान सजा लो
यदि तुमने
व्रत-पर्व
तीज-त्यौहार
खुशी के मौके
गमगीन माहौल
भारतीय दर्शन
पाश्चात्य सभ्यता
सबका बिजनेस मॉडल
सीख लिए न
तब तुम्हारे चाहने पर
कई गुलाबो तुम्हारे कदमों में होगी
अभी अपने आप से
बस इतना ही पूछो
अपने हाथ में ये गुलाब लेकर
तुम क्यों भटक रहे हो...?
- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

4 सौ किसानों को अब तक नहीं मिला टोकन, आक्रोशित किसानों ने समिति प्रबंधक और पटवारियों को बनाया बंधक

कवर्धा. तरेगांव के 4 सौ पंजीकृत किसानों को अब तक टोकन नहीं मिला है. आक्रोशित किसानों ने आज समिति प्रबंधक और पटवारियों को बंधक बना लिया. किसानों ने तरेगांव धान उपार्जन केंद्र के बाहर जमकर नारेबाजी की. टोकन पर्ची की मांग को लेकर तरेगांव के किसान आज बेहद उग्र नजर आये. 

मतलब क्या है अब बताओ दिल्ली के इंकलाब का

मायने क्या है समझाना जरा इस करारा जवाब का
मतलब क्या है अब बताओ दिल्ली के इंकलाब का

चकनाचूर हुआ होगा तूफान, लहर जाने क्या-क्या
मजाक उड़ गया बेहद भद्दा मोदीजी के ख्वाब का

अचार डालो मर्तबान में सब अर्जी-फर्जी नारों का
स्वागत करो भक्तों अब इस राजनीति नायाब का

गाल पर बिना तमाचा मारे बदला ऐसे भी लेते हैं
अरे जवाब ही नहीं है दिल्ली वालों के हिसाब का

- कंचन ज्वाला कुंदन

गाल पर बिना तमाचा मारे बदला ऐसे भी लेते हैं, अरे जवाब ही नहीं है दिल्ली ...