मंगलवार, 31 मार्च 2020

मिलने के बाद ही हम दम लेते ऐसा कि, हम दोनों में इरादा अटल नहीं मिला...

हम दोनों एक-दूसरे से चाहते थे मिलना
मिलने का मगर कोई हल नहीं मिला
बमुश्किल हमें जब हल कोई मिला
मिलने का मगर तब पल नहीं मिला
समय की संयोग से हाथ लगा पल जब
तब मिलने का बराबर बल नहीं मिला
यूँ टलती ही रही तारीख हमारे मिलन की
पर मिल सकें ऐसा कोई कल नहीं मिला
मिलने के बाद ही हम दम लेते ऐसा कि
हम दोनों में इरादा अटल नहीं मिला
- कंचन ज्वाला कुंदन


सोमवार, 30 मार्च 2020

बोलने में पंचमुखी नजरिया षडकोण रहे, अरे दौलत के लिए भैया दशभुज बनो...

द्विबाहु पैदा हुए हो ये बात तो नैसर्गिक है
मैं चाहता हूँ तुम मेहनत में त्रिभुज बनो
खुद के खातिर बनो, बड़े शातिर बनो
माहिर हो जाओ चालाकी में चतुर्भुज बनो
येन-केन-प्रकारेण पूरा करो स्वार्थ अपना
अपने मतलब की आदतों में अष्टभुज बनो
बोलने में पंचमुखी नजरिया षडकोण रहे
अरे दौलत के लिए भैया दशभुज बनो
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 29 मार्च 2020

अभी अंधेरे में रह ले, गुमनामी में जी ले, सब्र रख बड़े जोरों से सवेरा भी आएगा...

हर कुत्ते का दिन आता है तेरा भी आएगा
मैं सब्र रखा हूँ क्योंकि दिन मेरा भी आएगा
तू सच्चा है तो सौदा कर अपने ईमानों का
खुद ही चलके साला कोई डेरा भी आएगा
मुसीबतों से लड़ने हथियार जुटाके रख
तुम्हें घेरने को संकट का घेरा भी आएगा
धूप से तिलमिला कर तू निकलेगा बाहर
तभी मुसीबत बनकर अंधेरा भी आएगा
अभी अंधेरे में रह ले, गुमनामी में जी ले
सब्र रख बड़े जोरों से सवेरा भी आएगा
- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

वो आबरू है फ़क़त कोई तमाशा नहीं, तू छीन करके ले लेगा ये दम है क्या...

और क्या चाहिए था कुछ गम है क्या
जितना भी मिला उतना कम है क्या
वो आबरू है फ़क़त कोई तमाशा नहीं
तू छीन करके ले लेगा ये दम है क्या
उसने जो दिया तू उतना ही मंजूर कर
उसकी पप्पी-वप्पी भी रहम है क्या
तू उसकी चाहत का पूरा सम्मान कर
लगता है तेरे मन में कुछ वहम है क्या
वो मिलने का पल था या बिछड़ने का
लो देखो मेरी आँखें जरा नम है क्या
रिलैक्स हो जा कुंदन कोई बात नहीं
कल का थोड़ा बचा हुआ रम है क्या
- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 18 मार्च 2020

खुद्दारी का परकोटा त्यागो, सांप-सा केंचुल बदलना सीखो...

समय के साथ चलना सीखो
समय के साथ ढलना सीखो
समय की मांग है शातिर बनो
छलिया बनकर छलना सीखो
जो जले उसे और जलाओ
गरम तवे पर तलना सीखो
खुद्दारी का परकोटा त्यागो
सांप-सा केंचुल बदलना सीखो
तुम भी चलो कुचलना सीखो
तुम भी चलो मसलना सीखो
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 17 मार्च 2020

मैं जागकर बेचैन हूँ सारी-सारी रात, तुम्हें चैन से सोकर सिर्फ ख्वाब चाहिए...

तुम्हें अपनी नींद का पूरा हिसाब चाहिए
मैं क्यों जाग रहा हूँ मुझे जवाब चाहिए
मैं जागकर बेचैन हूँ सारी-सारी रात
तुम्हें चैन से सोकर सिर्फ ख्वाब चाहिए
आखिर ये कैसा प्यार करती हो मुझसे तुम
मैं चाहता हूँ सूरज तुम्हें महताब चाहिए
ऐसा लगता है दर्द की दुकां ही खोल लूँ
बैठकर बेचता रहूँगा जिसे अज़ाब चाहिए
घुटकर नहीं अब डूबकर मरूँगा कुंदन
इन आँखों में आंसुओं का सैलाब चाहिए
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 16 मार्च 2020

यूँ रात-रात जागना और लंबी-लंबी बातें वहीं, समय खोने पर भी लगता है कुछ पाने जैसा

मेरी दूसरी मोहब्बत का नाम है पुराने जैसा
मैं फिर हो गया हूँ दीवाना वही दीवाने जैसा
यूँ रात-रात जागना और लंबी-लंबी बातें वही
समय खोने पर भी लगता है कुछ पाने जैसा
कभी कुछ भूल जाना, कभी कुछ छूट जाना
हो रहा है लगभग वही बीते अफसाने जैसा
महसूस कर रहा हूँ नए तरानों से ऐसा कि
दिल के तड़प में भी ख़ुशी से इतराने जैसा
चलो जी लेते हैं इस नए मोहब्बत को भी
अरे अंजाम तो वही होगा चोट खाने जैसा
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 15 मार्च 2020

मैं काला क्यों करता हूँ रोज-रोज पन्ने, उसे लिखने की इतनी जरूरत क्या है...

अरे कोई तो बता दो ये मोहब्बत क्या है
उसे रोज याद करता हूँ ये आदत क्या है
वो भूल गई होगी मुझे भूल जाना चाहिए
यूँ याद में तड़पने की मेरी चाहत क्या है
कभी बंद कमरे के मायने तलाशता हूँ
कभी खोजता हूँ ये खुली छत क्या है
मैं काला क्यों करता हूँ रोज-रोज पन्ने
उसे लिखने की इतनी जरूरत क्या है
मैं जानता हूँ कुंदन इसे तूने बिगाड़ा है
अब तू ही सुधार ये तेरी सोहबत क्या है
- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 14 मार्च 2020

यूँ तरस से न देख मुझे बेचारा नहीं हूं, तंज न मार किस्मत का मारा नहीं हूं...

यूँ तरस से न देख मुझे बेचारा नहीं हूं
तंज न मार किस्मत का मारा नहीं हूं

हार को बदल दूंगा जीत में ये जिद है
जरा-सा टूटा जरूर हूं पर हारा नहीं हूं

मुगालता न पाल कि निगल लेगा मुझे
तेरा निवाला नहीं हूं तेरा चारा नहीं हूं

मैं मीठा नहीं ये तेरे जीभ का खोट है
मुझे पक्के से पता है मैं खारा नहीं हूं

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

उसी ने कहा सफर के लिए तैयार हूँ चलो, फिर अंजाम का ख़्याल आते ही डर गई...

बंदिशों के बावजूद भी मुझ पर मर गई
थोड़ी आजादी क्या मिली प्यार कर गई

उसी ने कहा सफर के लिए तैयार हूँ चलो
फिर अंजाम का ख़्याल आते ही डर गई

मैं अधूरे मिलन पर आवारा हूँ आज भी
वो चेहरे पर कुछ पोतकर निखर गई

मैं खुद को समेटने में लगा हूँ अब तक
मेरी सारी उम्मीदें अचानक बिखर गई

- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 4 मार्च 2020

उसने फेंका था नदी में कि डूब मरूं, मगर डूबकर मछली निकाला मैंने...

जो करना नहीं था कर डाला मैंने
बिल्कुल भी तनाव नहीं पाला मैंने

मैं नोंचकर आया हूँ आज जिस्म को
निकाल दिया दिल का दिवाला मैंने

पहले फ़ितूर था पाक मोहब्बत का
अब साफ़ कर दिया सब ज़ाला मैंने

उसने फेंका था नदी में कि डूब मरूं
मगर डूबकर मछली निकाला मैंने

इस बार रख दी जिस्म की डिमांड
खोल दिया मुंहफट का ताला मैंने

अच्छा है मान गई एक ही झटके में
कि बॉडी नीड का दिया हवाला मैंने

अब ये नहीं होगा कि उलझा ही रहूँ
सॉरी बना लिया आखिर निवाला मैंने

मैं पहले नहीं था बिल्कुल कुछ ऐसा
समय के सांचे में खुद को ढाला मैंने

इतना तो याद रख ये हवस नहीं था
ये किस्सा लम्बे समय तक टाला मैंने

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 3 मार्च 2020

याद कर लेना 24 घंटों में चंद पल, इतना ही तो तुझसे कहना चाहता हूँ...

तुझसे बात यही मैं कहना चाहता हूँ
मैं तेरा था तेरा ही रहना चाहता हूँ

तुम शादी कर लो उससे हँसी-ख़ुशी
तेरे लिए ये दर्द भी सहना चाहता हूँ

तुम शौहर की बांहों में लिपटी रहना
मैं तो तकिया बनके रहना चाहता हूँ

किचन में अकेली रहोगी तो बताना
खुसफुसा के कुछ कहना चाहता हूँ

मुझे मालूम है तेरे नहाने का अंदाज
शॉवर के पानी-सा बहना चाहता हूँ

याद कर लेना 24 घंटों में चंद पल
इतना ही तो तुझसे कहना चाहता हूँ

- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 2 मार्च 2020

तल्खी तो देखो कि दिए हुए गुलाब मांग ली, जिसमें छुपाके रखा था वो किताब मांग ली...

तल्खी तो देखो कि दिए हुए गुलाब मांग ली
जिसमें छुपाके रखा था वो किताब मांग ली

मैं कई-कई रात जागा उसके लिए खामखां
उसने आज 20 मिनट का हिसाब मांग ली

बोली- चैट में बर्बाद हुआ है मेरा 20 मिनट
जबरदस्त ढिठाई से मुझसे जवाब मांग ली

मैंने कहा- माफ़ करना गलती हो गई मुझसे
इसके बावजूद कमबख्त ने ख़्वाब मांग ली

मैंने कहा- मेरी हसीन सपने आये सो जाओ
बस इतना ही कहा था कि महताब मांग ली

मेरे सितारे गर्दिश पर थे चाँद क्या लाक़े देता
ज़ख्म पे नमक छिड़कने को अज़ाब मांग ली

- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 1 मार्च 2020

याद करने में मेरा कल भी हुआ बर्बाद, देखो आज की शाम भी यूँ निकल गया...

मैं संभलने की उम्र में जब फिसल गया
तब अंजाम क्या होता है पता चल गया

याद करने में मेरा कल भी हुआ बर्बाद
देखो आज की शाम भी यूँ निकल गया

खोया रहा उसकी यादों में नदी किनारे
पहले की तरह आज भी सूरज ढल गया

अफ़सोस है मुझे उसके बदल जाने पर
कमबख्त मैं भी तो कितना बदल गया

तू सहेज ले कुंदन बचे कीमती पलों को
उसे छोड़ दे यार जो पल गया जल गया

- कंचन ज्वाला कुंदन