बुधवार, 22 अप्रैल 2020

तो डूब मरना चाहिए हमें चुल्लू भर पानी में...

तो डूब मरना चाहिए हमें चुल्लू भर पानी में...
आज के समय में
सबसे बड़ा लुटेरा है व्हाट्सएप
ये रोज लूट रहा है
हम सबका कीमती वक्त
सबसे बड़ा डकैत है फेसबुक
ये रोज डाका डाल रहा है
हमारे कीमती समय पर
कोई थाना है क्या...?
जहाँ मैं इसका रिपोर्ट लिखा सकूँ
कोई अदालत है क्या...?
जहाँ इस केस पर सुनवाई हो
फेसबुक और व्हाट्सएप
वाकई कुसूरवार हो तो
लटका दो दोनों को
एक ही रस्सी से फांसी पर
और...
यदि हम ही गुनहगार हैं
तो डूब मरना चाहिए हमें
चुल्लू भर पानी में...
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

लद गए दिन लाठियों के, गोली दागो का समय है ये...

सोये रहे तो शिकार बनोगे
उठो जागो का समय है ये
रेंगने से मर जाना बेहतर
तेज भागो का समय है ये
लद गए दिन लाठियों के
गोली दागो का समय है ये
-कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 19 अप्रैल 2020

और बेमौत मारा गया पहले की तरह...

मैं अपने अस्तित्व के लिए
मैं अपने वजूद के लिए
लड़ाई लड़ रहा था
बरसों की तरह...
कई लोग मसलने में लगे थे
कई लोग कुचलने में लगे थे
कई लोग रौंदने में लगे थे मुझे
सदियों की तरह...
ना मैं दाम में बिका
ना मैं दंड में झुका
ना मैं भेद से हारा
मगर मैं साम में फंसा फिर से
और बेमौत मारा गया
पहले की तरह...
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

तैं रोथस काबर रे...रो-रो के जिनगी खोथस काबर... (छत्तीसगढ़ी गीत)

सबो संगवारी मन ल मोर डहर ले जय जोहार. संगवारी हो आज में एक ठन छत्तीसगढ़ी गीत सुनाना चाहत हंव...मोर लिखे गीत, गजल, कविता कोनो भी रचना के आपमन ल कोई उपयोगिता समझ म आही त जरुर सुझाव दुहु...बिना कोई लाग-लपेट बात के अब सीधा सुनव मोर ये गीत... रचना के शीर्षक हे " तैं रोथस काबर रे..."
तैं रोथस काबर रे...
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
पढ़-लिख के भईया, सपना सिरजाले
अपन जिनगानी ल उज्ज्वल बनाले
अजगर कस अल्लर सोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
तैं जिनगी ल अब तक बदल नई पाय
का बात हे मोरे समझ नई आय
गदहा कस बोझा ढोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
जांगर के भरोसा म जिनगी हे भईया
करम नई करबे त डूब जाही नईया
अइसन भी कोढ़िया होथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
चाहबे त जिनगी फुलवारी हो जाही
नई त आंखी म चुभही भारी हो जाही
काँटा के बीजा बोथस काबर रे
जिनगी ल अइसन खोथस काबर
तैं रोथस काबर रे...
रो-रो के जिनगी खोथस काबर
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 12 अप्रैल 2020

ये कहर क्यों है बरपा इधर हमीं पर, मस्ती में हूँ फिर भी अपनी कमी पर...

ये कहर क्यों है बरपा इधर हमीं पर
मस्ती में हूँ फिर भी अपनी कमी पर
तुम ही उड़ो जीभर आसमां मुबारक हो
अरे बेहतर हूँ मैं यहाँ इधर जमीं पर
और तेज भागो तुम बुलंदी के छोर तक
ठहरना है तुमको तो सीधा वहीं पर
इसी हाल पर ही छोड़ दो मुझे तुम
हाँ ठीक हूँ अकेला मैं इधर यहीं पर
पहुँचो तुम कहीं भी पीछे नहीं आऊंगा
मुझे जाना नहीं है जब उधर कहीं पर
- कंचन ज्वाला कुंदन


शनिवार, 11 अप्रैल 2020

मेरी मर्जी हो तो झूठ भी बोलूँगा, मैं चाहता नहीं पूरा सच्चा ही रहूँ...

मेरी मर्जी हो तो झूठ भी बोलूँगा
मैं चाहता नहीं पूरा सच्चा ही रहूँ
यूँ चुटकी भर अंदर बुराई भी रहे
मैं चाहता नहीं पूरा अच्छा ही रहूँ
मैं पकना नहीं चाहता पूरी तरह
मैं चाहता हूँ थोड़ा कच्चा ही रहूँ
किसी से खुद को बड़ा न कहूँ
मैं चाहता हूँ जरा बच्चा ही रहूँ
- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

मैदान में आते ही बनूँगा भीगी बिल्ली, फेसबुक में गुर्रा रहा हूँ मैं ही चीता हूँ...

तीन बार खाना चार बार चाय पीता हूँ
कुछ भी हो अपने उसूलों पर जीता हूँ
और ये उसूल क्या है तो कुछ भी नहीं
कभी आलू कभी अंडा कभी पपीता हूँ
मैं आंदोलन चला रहा हूँ व्हाट्सएप पर
इधर फटे जूते का टूटा हुआ फीता हूँ
मैदान में आते ही बनूँगा भीगी बिल्ली
फेसबुक में गुर्रा रहा हूँ मैं ही चीता हूँ
मैं टिकता नहीं हूँ एक ही विचार पर
मैं खुद ही खुद पर लगाता पलीता हूँ
- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

इधर चलता है हर वक्त जंगल-सा नियम...

आग लगा दो तुम्हारे सैकड़ों बहानों को
ये सारा खेल भीतर लगी आग का है
जिद से ही पूरा होगा अमीरी का सफ़र
मैं जानता हूँ ये सारा खेल दिमाग का है
मेरी मानो उसे छोड़ो मत तुम भी डसो
अरे तुम्हारा भी फन जहरीले नाग का है
इधर चलता है हर वक्त जंगल-सा नियम
यहाँ हर आदमी का पंजा बाघ का है
मैं तो कहता हूँ 'कुंदन' तू और भी तेज भाग
अरे ये कमीना वक्त ही भागमभाग का है
- कंचन ज्वाला कुंदन

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

और क्या चाहिए था कुछ गम है क्या, जितना भी मिला उतना कम है क्या

और क्या चाहिए था कुछ गम है क्या
जितना भी मिला उतना कम है क्या
वो आबरू है फ़क़त कोई तमाशा नहीं
तू छीन करके ले लेगा ये दम है क्या
उसने जो दिया तू उतना ही मंजूर कर
उसकी पप्पी-वप्पी भी रहम है क्या
तू उसकी चाहत का पूरा सम्मान कर
लगता है तेरे मन में कुछ वहम है क्या
वो मिलने का पल था या बिछड़ने का
लो देखो मेरी आँखें जरा नम है क्या
रिलैक्स हो जा कुंदन कोई बात नहीं
कल का थोड़ा बचा हुआ रम है क्या
- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 5 अप्रैल 2020

पैसा कमाना भी एक कला है 'कुंदन', निर्भर है ये भी अपने-अपने हुनर पर...

कब तक चलते रहोगे गरीबी के डगर पर
चलो निकलो तुम भी अमीरी के सफ़र पर
अमीरी कोई हौव्वा नहीं जो हासिल नहीं होगा
अमीरी ही रखो तुम हर पल नजर पर
अमीर से पूछो वो अमीर कैसे बना
किस्मत पर नहीं कर्म के असर पर
कठिन राह पर निकलो तो भरोसा रखो
खुदा पर नहीं खुद के जिगर पर
पैसा कमाना भी एक कला है 'कुंदन'
निर्भर है ये भी अपने-अपने हुनर पर
- कंचन ज्वाला कुंदन

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ऑनलाइन मिले और ऑफ़लाइन बिछड़ गए, एक-दूसरे के पते पर पैगाम तक नहीं पहुंचा

शुक्र है कि सफर मकाम तक नहीं पहुंचा
अच्छा हुआ रिश्ता अंजाम तक नहीं पहुंचा

हमारे दरमियाँ जो था मैं उसे क्या नाम दूँ
सुबह जो शुरू हुआ शाम तक नहीं पहुंचा

ऑनलाइन मिले और ऑफ़लाइन बिछड़ गए
एक-दूसरे के पते पर पैगाम तक नहीं पहुंचा

ख़ैर मनाओ तुम भी ख़ैर मना रहा हूँ मैं भी
बिछड़ने का दर्द भी जाम तक नहीं पहुंचा

हम अजनबी थे, हैं, और रहेंगे अजनबी ही
अच्छा है रिश्ता किसी नाम तक नहीं पहुंचा

- कंचन ज्वाला कुंदन

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

जिसे तू दल्ले कहता है उसकी सोने की सवारी है

पहले पूरा इसे साफ कर जो खून में खुद्दारी है
मुझे पकड़ में आ गया तेरी यही बड़ी बीमारी है
आंखें गड़ाके देख ले 5 रुपये है तेरे अकाउंट में
क्या खुद्दारी छोड़ने को ये बात भी नहीं भारी है
तू कहता है कि हर जगह दलाली चल रहा है
मैं तुम्हें फिर पूछता हूँ तुम्हारी क्या तैयारी है
तेरे 5 रुपये वाले खाते में मेरी बात नोट कर ले
जिसे तू दल्ले कहता है उसकी सोने की सवारी है
कलम घसीटना है तो घसीटते रहो भैया जी
मेरे पैसे बस लौटा देना तुमने लिया जो उधारी है
बहुत कड़वे तज़ुर्बों के बाद बता रहा हूँ ये बात
तू चाहे तो कह सकता है अनमोल जानकारी है
कुछ शब्द तो साले शब्दकोश में ही अच्छे हैं
उनमें से दो कठिन शब्द सच्चाई और ईमानदारी है
इन कठिन शब्दों से कोसों दूरियां बना लो तुम
अगर जरा भी तुम्हें अपनी जिंदगी प्यारी है
आजकल बड़े ही पूजनीय हो गए हैं कुछ शब्द
जिनमें चमचागिरी, स्वार्थ, दलाली और गद्दारी है
भिखमंगे ही रहना है या आगे भी बढ़ना है तुम्हें
धन बटोरना भी साहब गजब की कलाकारी है
मैं रायचंद का भतीजा बस राय देते फिरता हूं
मेरा ज्ञान-ध्यान, कागज-कलम सब सरकारी है
ये आज मेरे मुंह से जितने भी शब्द फूटे हैं
कुछ समेट भी लो बे सब जनहित में जारी है
- कंचन ज्वाला कुंदन

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

गुम रहो अभी खांसना भी मत, भूलकर भी भीड़ में छींकना नहीं...

जब तक इतिहास लिखना नहीं
अपने ही नजरों में दिखना नहीं
गुम रहो अभी खांसना भी मत
भूलकर भी भीड़ में छींकना नहीं
ओढ़ लो अभी ख़ामोशी की चादर
मंजिल मिलने तक चीखना नहीं
कीमत बढ़ने का इंतजार करो
अरे सस्ते में अभी बिकना नहीं
- कंचन ज्वाला कुंदन