गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

मॉर्निंग में मोबाइल बिल्कुल हाथ नहीं लगाना है

बिस्तर छोड़ते ही साथियों टहलने जाना है
सुबह-सुबह की सैर से सेहत बनाना है

तुम गांठ बांध लो एक बात बहुत अच्छे से
मॉर्निंग में मोबाइल बिल्कुल हाथ नहीं लगाना है

तन-मन-धन-जीवन चार भाग में बांटकर
चौबीस घंटे के चार पल भी व्यर्थ नहीं गवाना है

जरूर जिएं उसे जो जीवन का हिस्सा है
ये याद रखना लक्ष्य पर गंभीरता दिखाना है

ढुलमुल रवैये से तो काम नहीं चलेगा
अगर तुम्हें ऊँचे शिखर तक जाना है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

जिसे भरोसा नहीं खुद पर वही शख्स फेल है

घुंटने लगे अंदर ही ख्वाब तो जिंदगी जेल है
ख्वाब हकीकत में बदले तो जिंदगी रेल है

मैं तुमसे नहीं मिलता तुम मुझसे नहीं मिलते
हम दोनों की अधिकतर आदतें बेमेल है

मैं जो कर नहीं पाया वही उसने कर दिया
ये जानलो कि सब कुछ दिमाग का खेल है

सक्सेस-फेलियर के सफ़र में ही मजा है
फर्क न करो बाजी हेड है या टेल है

आगाज करो अंजाम के लिए हो जाओगे पास
जिसे भरोसा नहीं खुद पर वही शख्स फेल है

-कंचन ज्वाला कुंदन 

हुनर बेचकर ही कोई काम मिलेगा

क्या करोगे पढ़ाई के बाद
अपनी स्किल को बेचोगे
अपने समय को बेचोगे

तुम्हारा जो स्किल होगा
वो दाम मिलेगा

हुनर बेचकर ही
कोई काम मिलेगा

फिर क्यों नहीं सुधारते तुम अभी से
अपनी स्किल को

फिर क्यों नहीं बढ़ाते हो अभी से
अपने समय का मूल्य

-कंचन ज्वाला कुंदन

डूब चाहो चाहे नदी में कूद जाओ चाहे आग में

दरिद्रता है दिमाग में
और अमीरी है ख्वाब में

नहीं मिलेगी कामयाबी कभी

डूब चाहो चाहे नदी में
कूद जाओ चाहे आग में

मुझे बस इतना ही कहना था
तुम्हारे सवाल के जवाब में

जो दिमाग में हो वो ख्वाब में हो
जो ख्वाब में हो वो दिमाग में हो

तभी मिलेगी सफलता

मैंने यही पढ़ा है साथियों
दर्जनों किताब में

मुझे बस इतना ही कहना था
तुम्हारे सवाल के जवाब में

-कंचन ज्वाला कुंदन



मुझे नहीं पता था लक्ष्य के बारे में

कभी उड़ गया धुआं  में
कभी गिर गया कुआँ में
कभी मन को बहला लिया
दो टके के गुब्बारे में
मन में जो आया करता रहा
सालों तक भटकता रहा
फिर लौट आया हूँ अब
मैं अपने ही धारे में
मुझे नहीं पता था
लक्ष्य के बारे में
वो कब से खड़ा ही था
मेरे किनारे में

-कंचन ज्वाला कुंदन 

एक मार्कशीट के लिए...

तुम साल भर तक उलझे हो
इन किताबों में
सिर्फ एक मार्कशीट के लिए
मैं जानता हूँ ये बात भी
आखिर में तुम्हें बेरोजगार ही भटकना है
आज के इस बकवास शिक्षातंत्र से
मेरा पहला सवाल...
पढ़ने का अंतिम लक्ष्य
यदि आजीविका है
तो बताओ मुझे
मैं पढ़ना चाहता हूँ
कौन-सी किताब में
रोजगार का पाठ है
और कौन-सी रोजगार की किताब है
जिसका यथार्थ से संबंध है
जिसका धरातल से सरोकार है
मेरा दूसरा सवाल...
यदि इन किताबों  का मकसद
हमें विद्वान बनाना है
तो मैं मिलना चाहता हूँ उस शख्स से
जो इन किताबों को पढ़कर ही विद्वान बन गया हो

- कंचन ज्वाला कुंदन 

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

चावल-दाल की भाषण से पक चुकी थी जनता

चावल-दाल की भाषण से पक चुकी थी जनता
एक ही बटन पर ऊँगली दबाते थक चुकी थी जनता

नकचढ़ी सरकार को धूल चटाना बहुत जरूरी था
बदलाव के लिए बुलंद इरादा रख चुकी थी जनता

बहुत अफसोस हुआ होगा सरकारी संपादकों को
हमने अखबारों के प्री-डिसाइडेड समाचार ही बदल दी


अखबार के आड़ में भड़वागीरी बंद करो तुम
लो आखिर हमने अब सरकार ही बदल दी

- कंचन ज्वाला कुंदन

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

मक्कारी भी हुनर है इस जमाने में

चार चांद लग जाती है चालाकी से
मक्कारी भी हुनर है इस जमाने में

स्वार्थ सिद्ध हो तो कदम बढ़ाना आगे
मतलब जरूरी है कहीं भी जाने में


टेढ़ापन वाला सरलता भी अपना लो
इस कठिन जीवन के अफ़साने में

किसी को गड्ढे में गिराकर लगाओ ठहाके
खूब मजे भी लूटो किसी को फँसाने में

- कंचन ज्वाला कुंदन