बेचकर कलम अपनी और बेचकर आवाज
वो निकल चुका है फिर से खबर के लिए आज
वो निकल चुका है फिर से खबर के लिए आज
उसे नाश्ता भी नसीब न हो तो हैरत नहीं
कल भूखे पेट सोने की भी गिर सकती है गाज
कल भूखे पेट सोने की भी गिर सकती है गाज
अरे बिकी हुई कलम से कुछ घंटा नहीं होगा
उसे अपने पत्रकार होने पर कतई नहीं है नाज
उसे अपने पत्रकार होने पर कतई नहीं है नाज
रस्सियाँ जल जाती है मगर अकड़ नहीं जाती
बस ऐसे ही अकड़ जारी है कोई आता नहीं बाज
बस ऐसे ही अकड़ जारी है कोई आता नहीं बाज
अरे दम घूंट चुका है पत्रकारिता का जनाब
बचा हुआ है उतना ही जितना अपने हाथ का खाज
बचा हुआ है उतना ही जितना अपने हाथ का खाज
-कंचन ज्वाला कुंदन
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