रविवार, 22 सितंबर 2019

मैंने सिर्फ एक ही शब्द बस माँ लिख दिया

मैंने माशूका पर ढेरों गजलें खामखां लिख दिया
लिखना तो था ही नहीं मगर हाँ लिख दिया

कोरे कागजों को काला करता रहा मोहब्बत पर
छद्म शब्दों का, आडंबर का कारवां लिख दिया

शिक्षक ने आज कहा परिवार पर कविता लिखो
मैंने सिर्फ एक ही शब्द बस माँ लिख दिया

शिक्षक ने कहा कुछ और आगे भी लिखो
मैंने माँ को मेरी खूबसूरत जहां लिख दिया

माँ पर कविता मेरे लिए मुमकिन नहीं गुरुजी
मैंने लिखने के अंत में अनंत आसमां लिख दिया

- कंचन ज्वाला कुंदन

रविवार, 8 सितंबर 2019

अरे ये जिंदगी का साला बेसुरा ही लय है

हमारा ये सिस्टम साला कुछ ऐसा ही चलेगा, कभी दाल नहीं गलेगी कभी मूंग भी दल...

हमारा ये सिस्टम साला कुछ ऐसा ही चलेगा, कभी दाल नहीं गलेगी कभी मूंग भी दल...

मंगलवार, 3 सितंबर 2019

तुम्हें पता नहीं है दोस्त दरअसल पर्दे की कहानी

अगर इजाजत हो जनाब तो पूछना चाहता हूँ एक बात
बताओ मुझे पत्रकारिता की आजकल क्या है औकात
जिन चंद शब्दों को बता रहा है रिपोर्टर भी
उन्हीं चंद शब्दों को दुहरा रहा है एंकर भी
आजकल के पत्रकारों को पिटपिटी सांप भी डराता है
टिक-टॉक का छिछोरा भी उसे दलाल बताता है
टीवी पर वो आदमी चंद रोटी के लिए आता है
बड़ी मुश्किल से बेचारे का परिवार पल पाता है
तुम्हें पता नहीं है दोस्त दरअसल पर्दे की कहानी
पर्दे के पीछे वाला आदमी सबसे ज्यादा कमाता है
- कंचन ज्वाला कुंदन

बेचकर कलम अपनी और बेचकर आवाज

बेचकर कलम अपनी और बेचकर आवाज
वो निकल चुका है फिर से खबर के लिए आज
उसे नाश्ता भी नसीब न हो तो हैरत नहीं 
कल भूखे पेट सोने की भी गिर सकती है गाज
अरे बिकी हुई कलम से कुछ घंटा नहीं होगा
उसे अपने पत्रकार होने पर कतई नहीं है नाज
रस्सियाँ जल जाती है मगर अकड़ नहीं जाती
बस ऐसे ही अकड़ जारी है कोई आता नहीं बाज
अरे दम घूंट चुका है पत्रकारिता का जनाब
बचा हुआ है उतना ही जितना अपने हाथ का खाज
-कंचन ज्वाला कुंदन

साला कौड़ी भर सच दिखाने के लिए

ये रास्ता छोड़ दे वो मंजिल पाने के लिए
तू मर जाएगा बे एक-एक दाने के लिए
काश, मेरी बात तुम्हें समझ में आता
चैनल खुला है सिर्फ कमाने के लिए
पूरे दिन बक-बक, पूरी रात चिल्ल-पों
साला कौड़ी भर सच दिखाने के लिए
खबर की शक्ल में विज्ञापन ही विज्ञापन
तेरा बचा हुआ दिमाग भी खाने के लिए
अब ये मत कहना बे कुत्ते-कमीने
आपका शुक्रिया सच बताने के लिए
-कंचन ज्वाला कुंदन