रो रहा है हर आदमी आज गाते हुए
चीख रहा है हर आदमी आज मुस्कुराते हुए
मैं क्या कहूं मेरे लोकतंत्र का फसाना
मैं झुकना नहीं चाहता शरमाते हुए
मुझे ऐसा लगता है ये मक्खन-मखमली भाषण
जैसे कोड़े बरसा रहें हों कोई फूल बरसाते हुए
थन से खून आते तक दुहा नेताओं ने इसे
फिर लोकतंत्र है कम्बख्त आज भी इठलाते हुए
विकास हो रहा है बेतरतीब मौत के मुहानों पर
कब तक चुप रहोगे 'कुंदन' इस बात को झुठलाते हुए
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'
चीख रहा है हर आदमी आज मुस्कुराते हुए
मैं क्या कहूं मेरे लोकतंत्र का फसाना
मैं झुकना नहीं चाहता शरमाते हुए
मुझे ऐसा लगता है ये मक्खन-मखमली भाषण
जैसे कोड़े बरसा रहें हों कोई फूल बरसाते हुए
थन से खून आते तक दुहा नेताओं ने इसे
फिर लोकतंत्र है कम्बख्त आज भी इठलाते हुए
विकास हो रहा है बेतरतीब मौत के मुहानों पर
कब तक चुप रहोगे 'कुंदन' इस बात को झुठलाते हुए
- कंचन ज्वाला 'कुंदन'