शुक्रवार, 13 मई 2016

जस्टिफाई करो... सर्टिफाई करो...व्यंग्य


                                                       जस्टिफाई करो... सर्टिफाई करो...
                                                                        
व्यंग्य
    
     हुआ यों कि हमें हो गई ऑफिस जाने में तनिक देरी। संपादक जी हमें बुलाए और झल्लाए। वो देर तक गरियाते रहे हम चुपचाप निरीह गाय की तरह अंदर -ही -अंदर बातों का जुगाली करते रहे। हमने सोचा साहब की तो पुरानी आदत है, बात -बे- बात पर गरियाने की। आखिरकार हम भी अपनी स्पष्टीकरण की पुरानी आदत पर लौट आए और बड़ी सफाई के साथ लेट होने की सफाई दे डाले। अब हम अपने काम पर मशरूफ थे और अपनी कुर्सी पर चिपक चुके थे। परंतु अब भी  संपादक जी कहे शब्द 'अपने काम की रिपोर्ट डेली मेल करो और अपने काम को सौ प्रतिशत जस्टिफाई करो, खुद को सौ प्रतिशत सर्टिफाई करोÓ बार-बार गूंज रहे थे।
    
     'जस्टिफाई करो... सर्टिफाई करोÓ इसके बार-बार अनुगूंज से माथे पर बल पडऩे लगे थे, अब मैंने ठान लिया कि पहले इस कमबखत जस्टिफाई और सर्टिफाई का वैरिफाई कर सैटिस्फाई हुआ जाए। मैं मन ही मन ढूंढऩे लगा कि ऑफिस में ऐसे कौन हैं जो अपने काम के साथ सौ प्रतिशत जस्टिफाई कर रहा है और खांमखां कौन है जो खुद को सौ प्रतिशत सर्टिफाई करने में तुला है। पहली सुई घूमी स्वमेव संपादक की ओर... अरे कहां सौ प्रतिशत जस्टिफाई, सर्टिफाई भैया....और पेजों की तो छोड़ो, रोज फ्रंट पेज में ही बीसियों गलतियां रहती हैं। दूसरी सुई घूमी... शुक्ला जी की ओर... तीसरी सुई... वर्मा जी की ओर... किसी सुई में सौ प्रतिशत जस्टिफाई नहीं मिला।

     अब मुआयने की सुई तेजी से घूमते हुए देश के पुलिस, डॉक्टर, शिक्षक... तक गया। कहीं नहीं निकला सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सौ प्रतिशत सर्टिफाई। सुई जब पुलिस तक पहुंची, पुलिस अपनी वर्दी के प्रभाव और डंडे के दबाब पर एक रोते हुए गरीब आदमी से पैसे ऐंठ रहा था। सुई डॉक्टर तक पहुंची, डॉक्टर रूम के अंदर व्हाट्सएप में बिजी रहे और मरीज बिस्तर पर कराहते नजर आए। शिक्षक ऊंघ रहे थे कुर्सी पर, बच्चे खेल रहे थे मैदानों पर। कांग्रेस कमर कसने में लगा था, भाजपा जुमलों में उलझा था। जनता बेचारी थैला पकड़कर सब्जियों के भाव पूछते नजर आया। सुई लालू के लाल टेन, बाबा जी की क्रीम के सफर करते हुए केजरी के देहरी से होते हुए मोदी के गोदी पर जा बैठी। पर कहीं नहीं निकला सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सौ प्रतिशत सर्टिफाई।

     जब सुई केजरीवाल साहब के पास पहुंची तो काफी देर तक ठिठकी रही। केजरीवाल जी अरबों में अलग एक इकलौता आदमी हैं और यही बात केजरीवाल साहब आज पर्यंत जस्टिफाई और सर्टिफाई करने में लगे हैं। मानो केजरीवाल का तो 'मैं अरबों में अलग हंूÓयह सर्टीफाई करना ही एक मिशन बन गया है। मनमोहन बोले मैं मौन था तो जनता को रास नहीं आई। अब बड़बोले मोदी को झेलो। जब सुई मोदी तक पहुंची तो वहां भी रुक गई, मोदी जी तो मुआयने की सुई को ही कई घंटे तक भाषण की चमन घूंटी पिला दिए। अच्छे दिन आएंगे, न खाउंगा न खाने दूंगा, जैसे लच्छेदार जुमले पिरो-पिरो कर सुई के कान को छलनी कर दिया।

    अब हमारे मन के अंदर से इस जस्टिफाई और सर्टिफाई का गुब्बारा फूट चुका था। भूत उतर चुका था। हमने राहत का सांस लिया कि सौ प्रतिशत का ठीकरा श्रीमान संपादक के माथे पर ही रहे तो ठीक है। अब हम थोड़ी तंदुरुस्ती के साथ तेजी से अपने काम दुरुस्त करने में जुट चुके थे। हालांकि मन के अंदर सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सर्टिफाई की बूटी काम करने लगा था। हम बार-बार इस चिंतन में डूब रहे थे कि यदि यह सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सर्टिफाई की बूटी आदमी हर दिन लेने लगे तो देश का कायाकल्प ही हो जाएगा। अब हम आगे सौ प्रतिशत जस्टिफाई और सर्टिफाई करें न करें पर हम इस बात से सौ प्रतिशत शिद्दत के साथ सहमत हो चुके थे कि यह वाकई कमाल की बूटी है। हम जैसे मृतप्राय मरियलों के लिए तो साक्षात् संजीवनी है।


                                                                                                               -कंचन ज्वाला 'कुंदन'
                                                                                                               kundanjwala@gmail.com

डिग्री और थर्डडिग्री. व्यंग्य

                                                          डिग्री और थर्डडिग्री
 
                                                                 व्यंग्य

    आजकल बेरोजगारी सुरसा की मुख की तरह बढ़ता ही जा रहा है। ढंग की कोई नौकरी करने एमबीए और इंजीनियरिंग की डिग्री भी नाकाफी साबित हो रहा है। बेरोजगारी का आलम इस कदर बढ़ गया है कि हर डिग्रीधारी आदमी के लिए उसकी डिग्री जेल की थर्डडिग्री साबित हो रही है। जेल में मुजरिम से सही बात उगलवाने पुलिस थर्डडिग्री का सहारा लेती है। खूब मार पड़ती है, जख्म पर मिर्ची छिड़का जाता है, मुंह में कपड़ा ठूंसकर शॉक दिया जाता है...। कुल मिलाकर कहें तो जेल की थर्डडिग्री प्रताडऩा की इंतिहा होती है। थर्डडिग्री का एक कायदा रहता है कि कितना भी कूटो आदमी मरना नहीं चाहिए।

     बस कुछ इस तरह ही डिग्री को रखकर आदमी थर्डडिग्री झेलते रहता है कि उसे कभी न कभी अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी। इस डिग्री के चलते तो कई लोग गले में रस्सी डालकर धूप में कपड़े की तरह टंगकर सूख जाते हैं। आदमी इंतजार में मर रहा है। नौकरी है कि सरकार के घर के अंदर नौकरानी बन बैठी है। वह आम आदमी के दर्शन के लिए बाहर निकलती ही नहीं। आखिर सरकार को कोई कैसे समझाए कि डिग्री का दंश जेल की थर्डडिग्री से बड़ा है भैया...।

    अब केजरीवाल साहब को देख लीजिए, उनकी डिग्री की फिक्री इस कदर बढ़ गई कि मोदी की डिग्री पीछे पड़ गए हैं। डिग्री बता दिए तो उसे केजरीवाल ने फिर एक नया डिग्री करार दे दिया। फर्जी की डिग्री। मोदी की डिग्री का क्या करोगे केजरीवाल जी...। हम बेरोजगार युवाओं की भी कभी डिग्री पूछ लो। चपरासी के पद पर इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी युवक अर्जी लगा रहे हैं कि हमें इंजीनियर नहीं चपरासी बना दो। कभी-कभी तो अवसाद की स्थिति में मन होता है कि इन सभी डिग्री की बिक्री ही कर दूं।

    ये डिग्री का डगर भी बड़ा रोचक है जनाब। बचपन में चार अक्षर पढऩा क्या सीख गए, लोगों ने कहा- मुन्ना बहुत होशियार है। इसके पास बड़ी डिग्री होगी। बहुत ऊपर तक जाएगा। घर आए मेहमान अंकल को दो-चार पोयम क्या सुना दिए, घरवालों ने उसी बखत डिसाइड कर लिया कि मुन्ने को ऊंची शिक्षा और बड़ी डिग्री दिलवाएंगे।                                                                   

किसी ने कहा- पांचवी फस्र्ट डिवीजन से पास कर लो मुन्ना भविष्य सुधर जाएगा। कर लिया पांचवी पास पूरे जिला मे टॉप। फिर किसी ने कहा- 10वीं कर लो, 12 वीं कर लो। अब ये भी कर लिया तो कहीं से सुना कि ग्रेजुएट पर्सन बनने मेंं रुतबा और बढ़ जाएगाऔर साथ में डिग्री भी बढ़ जाएगी। फिर पोस्ट गे्रजुएशन, एमफिल और पीएचडी का चक्कर इस तरह डिग्रियांे का जखीरा बढ़ता गया। ये मालूम नहीं था कि यही डिग्रियां एक दिन जेल की थर्डडिग्री का एहसास कराएगी।

                                                                                कंचन ज्वाला 'कुंदन'
                                                                             kundanjwala@gmail.com